EN اردو
मल ख़ून-ए-जिगर मेरा हाथों से हिना समझे | शाही शायरी
mal KHun-e-jigar mera hathon se hina samjhe

ग़ज़ल

मल ख़ून-ए-जिगर मेरा हाथों से हिना समझे

इंशा अल्लाह ख़ान

;

मल ख़ून-ए-जिगर मेरा हाथों से हिना समझे
मैं और तो क्या कोसूँ पर तुम से ख़ुदा समझे

समझाने की जो बातें कीं मैं ने दिला तुझ से
ऐ अक़्ल की दुश्मन सो तेरी तो बला समझे

दिल में मिरे चुटकी ली ऐसी है कि दर्द उट्ठा
माक़ूल चे ख़ुश ऐ वाह आप इस को अदा समझे

ऐ बू-लहब-ए-नख़वत सीधे हैं अगर सच-मुच
तो आज से साहब को हम अपना चचा समझे

साहब ने न की यारी वहशत से परी से तो
ऐ शैख़-ए-जुनूँ तुम को हम ख़्वाजा-सरा समझे

हँगामा-ए-महशर भी गर सामने आया तो
उस को भी तमाशाई एक साँग नया समझे

वो दश्त-ए-मोहब्बत में रक्खे क़दम ऐ 'इंशा'
सर अपने को आगे ही जो तन से जुदा समझे