EN اردو
मज्लिस-ए-ऐश गर्म हो या-रब | शाही शायरी
majlis-e-aish garm ho ya-rab

ग़ज़ल

मज्लिस-ए-ऐश गर्म हो या-रब

सिराज औरंगाबादी

;

मज्लिस-ए-ऐश गर्म हो या-रब
यार अगर होवे शम्-ए-बज़्म-ए-तरब

ख़ून-ए-दिल आँसुओं में सर्फ़ हुआ
गिर गई ये भरी गुलाबी सब

मोहर है दाग़-ए-ग़म सीं दिल की बरात
नक़्द-ए-दीदार है हमारी तलब

चाहिए ज़ाहिदों कूँ हुज्रा-ए-तंग
बाग़-ए-आशिक़ है वुसअत-ए-मशरब

दिल मिरा है तिरे तग़ाफ़ुल सीं
अंदलीब-ए-गुल-ए-बहार ग़ज़ब

दिल की जागीर है जमाल-आबाद
जब सीं पाया है इश्क़ का मंसब

न मिले जब तलक विसाल उस का
तब तलक फ़ौत है मिरा मतलब

गुल की मानिंद मत परेशाँ हो
बंद कर मिस्ल-ए-ग़ुंचा अपने लब

शम्अ ओ परवाना सीं सुना है 'सिराज'
सिद्क़-ए-दिल सीं अदब है तर्क-ए-अदब