मैं यार का जल्वा हूँ
या दीदा-ए-मूसा हूँ
क़तरा हूँ न दरिया हूँ
बस्ती हूँ न सहरा हूँ
जीना मिरा मरना है
मरने को तरसता हूँ
अपनी ही उमीदों का
बिगड़ा हुआ नक़्शा हूँ
अरमानों का गहवारा
हसरत का जनाज़ा हूँ
इस आलम-ए-हस्ती में
यूँ हूँ कि मैं गोया हूँ
ज़िंदा हूँ मगर बेदम
इक तुर्फ़ा-तमाशा हूँ
ग़ज़ल
मैं यार का जल्वा हूँ
बेदम शाह वारसी