EN اردو
मैं रतजगों के मुकम्मल अज़ाब देखूँगा | शाही शायरी
main ratjagon ke mukammal azab dekhunga

ग़ज़ल

मैं रतजगों के मुकम्मल अज़ाब देखूँगा

ज़मान कंजाही

;

मैं रतजगों के मुकम्मल अज़ाब देखूँगा
किसी ने जो नहीं देखे वो ख़्वाब देखूँगा

वो वक़्त आएगा मेरी हयात में जब मैं
मोहब्बतों के चमन में गुलाब देखूँगा

घिरा हुआ हूँ अँधेरों में ग़म नहीं मुझ को
शब-ए-सियाह के ब'अद आफ़्ताब देखूँगा

चलेंगे तेज़ बहुत तेरी याद के झोंके
मैं अपनी आँख में जब सैल-ए-आब देखूँगा

मैं नुक़्ता नुक़्ता उतर कर तिरी निगाहों में
वरक़ वरक़ तिरे दिल की किताब देखूँगा

उदासियों के सिवा कुछ नहीं मिलेगा मुझे
'ज़मान' जब भी मोहब्बत का बाब देखूँगा