मैं ने कहा कि राज़ छुपाया न जाएगा
बोले किसी से मुँह भी लगाया न जाएगा
हो एक दो घड़ी का तो हम जी पे सह भी लें
आठों पहर का ग़म तो उठाया न जाएगा
इस ना-मुराद दिल ने ये ठानी है ऐ ख़याल
सोई मोहब्बतों को जगाया न जाएगा
हर ग़ुंचा दिल-गिरफ़्ता हुआ सुन के मेरी बात
छोड़ो भी अब वो क़िस्सा सुनाया न जाएगा
किस भारी दिल से जाते हैं हम उस के दर पे आज
सर झुक गया वहाँ तो उठाया न जाएगा
किस की नज़र के काँटे पे तुलता है बर्ग-ए-गुल
तेरे सुबुक लबों से बताया न जाएगा
हर लाला उस चमन का है बे-दाग़ आरज़ू
शबनम से ये चराग़ जलाया न जाएगा
'मसऊद' बाग़-ए-हिन्द में क्या आ गई बहार
हम से तो इस बहार में गाया न जाएगा

ग़ज़ल
मैं ने कहा कि राज़ छुपाया न जाएगा
मसऊद हुसैन ख़ां