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मैं नाम-लेवा हूँ तेरा तू मो'तबर कर दे | शाही शायरी
main nam-lewa hun tera tu moatabar kar de

ग़ज़ल

मैं नाम-लेवा हूँ तेरा तू मो'तबर कर दे

वकील अख़्तर

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मैं नाम-लेवा हूँ तेरा तू मो'तबर कर दे
हयात ख़ूब नहीं है तू मुख़्तसर कर दे

हिसार-ए-ज़ात के ज़िंदान-ए-बे-अमाँ की ख़ैर
ग़ुबार-ए-राह की सूरत ही मुन्तशर कर दे

दरोग़-ए-मस्लहत-आमेज़ के ख़राबे में
अना-पसंद मिज़ाजों को दर-ब-दर कर दे

गए दिनों को तलाशें कि अगली रुत में खुलें
तू मौसमों को हवाओं से बा-ख़बर कर दे

लिबास-ए-फ़क़्र में इतनी तवंगरी तो रहे
दिल-ए-ग़रीब को वुसअ'त में बहर-ओ-बर कर दे

मैं एक उम्र से जागा किया हूँ जिस के लिए
दुआ-ए-नीम-शबी में ज़रा असर कर दे

'वक़ार' शख़्स कि शाइ'र न उस की फ़िक्र न फ़न
तमाम ऐब हैं चाहे तो सब हुनर कर दे