मैं नाम-लेवा हूँ तेरा तू मो'तबर कर दे 
हयात ख़ूब नहीं है तू मुख़्तसर कर दे 
हिसार-ए-ज़ात के ज़िंदान-ए-बे-अमाँ की ख़ैर 
ग़ुबार-ए-राह की सूरत ही मुन्तशर कर दे 
दरोग़-ए-मस्लहत-आमेज़ के ख़राबे में 
अना-पसंद मिज़ाजों को दर-ब-दर कर दे 
गए दिनों को तलाशें कि अगली रुत में खुलें 
तू मौसमों को हवाओं से बा-ख़बर कर दे 
लिबास-ए-फ़क़्र में इतनी तवंगरी तो रहे 
दिल-ए-ग़रीब को वुसअ'त में बहर-ओ-बर कर दे 
मैं एक उम्र से जागा किया हूँ जिस के लिए 
दुआ-ए-नीम-शबी में ज़रा असर कर दे 
'वक़ार' शख़्स कि शाइ'र न उस की फ़िक्र न फ़न 
तमाम ऐब हैं चाहे तो सब हुनर कर दे
        ग़ज़ल
मैं नाम-लेवा हूँ तेरा तू मो'तबर कर दे
वकील अख़्तर

