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मैं न ठहरूँ न जान तू ठहरे | शाही शायरी
main na Thahrun na jaan tu Thahre

ग़ज़ल

मैं न ठहरूँ न जान तू ठहरे

जौन एलिया

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मैं न ठहरूँ न जान तू ठहरे
कौन लम्हों के रू-ब-रू ठहरे

न गुज़रने पे ज़िंदगी गुज़री
न ठहरने पे चार-सू ठहरे

है मिरी बज़्म-ए-बे-दिली भी अजीब
दिल पे रक्खूँ जहाँ सुबू ठहरे

मैं यहाँ मुद्दतों में आया हूँ
एक हंगामा कू-ब-कू ठहरे

महफ़िल-ए-रुख़्सत-ए-हमेशा है
आओ इक हश्र-ए-हा-ओ-हू ठहरे

इक तवज्जोह अजब है सम्तों में
कि न बोलूँ तो गुफ़्तुगू ठहरे

कज-अदा थी बहुत उमीद मगर
हम भी 'जौन' एक हीला-जू ठहरे

एक चाक-ए-बरहंगी है वजूद
पैरहन हो तो बे-रफ़ू ठहरे

मैं जो हूँ क्या नहीं हूँ मैं ख़ुद भी
ख़ुद से बात आज दू-बदू ठहरे

बाग़-ए-जाँ से मिला न कोई समर
'जौन' हम तो नुमू नुमू ठहरे