मैं न ठहरूँ न जान तू ठहरे
कौन लम्हों के रू-ब-रू ठहरे
न गुज़रने पे ज़िंदगी गुज़री
न ठहरने पे चार-सू ठहरे
है मिरी बज़्म-ए-बे-दिली भी अजीब
दिल पे रक्खूँ जहाँ सुबू ठहरे
मैं यहाँ मुद्दतों में आया हूँ
एक हंगामा कू-ब-कू ठहरे
महफ़िल-ए-रुख़्सत-ए-हमेशा है
आओ इक हश्र-ए-हा-ओ-हू ठहरे
इक तवज्जोह अजब है सम्तों में
कि न बोलूँ तो गुफ़्तुगू ठहरे
कज-अदा थी बहुत उमीद मगर
हम भी 'जौन' एक हीला-जू ठहरे
एक चाक-ए-बरहंगी है वजूद
पैरहन हो तो बे-रफ़ू ठहरे
मैं जो हूँ क्या नहीं हूँ मैं ख़ुद भी
ख़ुद से बात आज दू-बदू ठहरे
बाग़-ए-जाँ से मिला न कोई समर
'जौन' हम तो नुमू नुमू ठहरे
ग़ज़ल
मैं न ठहरूँ न जान तू ठहरे
जौन एलिया