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मैं जो बद-हवास था महव-ए-कयास तुम भी थे | शाही शायरी
main jo bad-hawas tha mahw-e-qayas tum bhi the

ग़ज़ल

मैं जो बद-हवास था महव-ए-कयास तुम भी थे

मुज़फ़्फ़र अबदाली

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मैं जो बद-हवास था महव-ए-कयास तुम भी थे
बिछड़ते वक़्त ज़रा सा उदास तुम भी थे

बदलते वक़्त का मंज़र था सब की आँखों में
मिसाल मैं था अगर इक़्तिबास तुम भी थे

मुझे तो दार मिला तुम को कैसे तख़्त मिला
सुना है मेरी तरह हक़-शनास तुम भी थे

तुम्हारे होंट से ख़ुशियाँ छलक गईं कैसे
उठाए हाथ में ख़ाली गिलास तुम भी थे

अकेला-पन पे कई शेर कह दिए मैं ने
ये और बात मिरे आस पास तुम भी थे