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मैं जिस जगह भी रहूँगा वहीं पे आएगा | शाही शायरी
main jis jagah bhi rahunga wahin pe aaega

ग़ज़ल

मैं जिस जगह भी रहूँगा वहीं पे आएगा

आलम ख़ुर्शीद

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मैं जिस जगह भी रहूँगा वहीं पे आएगा
मिरा सितारा किसी दिन ज़मीं पे आएगा

लकीर खींच के बैठी है तिश्नगी मिरी
बस एक ज़िद है कि दरिया यहीं पे आएगा

मुहीब साए बढ़े आते हैं हमारी तरफ़
कब ए'तिबार हमें दूर-बीं पे आएगा

अब इस अदा से हवाएँ दिए बुझाएँगी
कि इत्तिहाम भी ख़ाना-नशीं पे आएगा

कमान-ए-वक़्त ने हम को हदफ़ बनाया है
कहीं से तीर चलेगा हमीं पे आएगा

उड़ा रहा हूँ ग़ुबारा मगर ख़बर है मुझे
ज़रा सी देर में वापस ज़मीं पे आएगा