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मैं इन हसीन नज़ारों के पास आ न सका | शाही शायरी
main in hasin nazaron ke pas aa na saka

ग़ज़ल

मैं इन हसीन नज़ारों के पास आ न सका

नय्यर वास्ती

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मैं इन हसीन नज़ारों के पास आ न सका
ख़िज़ाँ-नसीब बहारों के पास आ न सका

रहा फ़लक पे सितारों में जल्वा गर महताब
वो अपने सीना-फ़गारों के पास आ न सका

तमाम उम्र रहा हम-कनार मौजों से
सफ़ीना अपना किनारों के पास आ न सका

गदा-ए-इश्क़ की दौलत थी फ़िक़्ह-ओ-इस्ति़ग़ना
वो माल-ओ-ज़र के सहारों के पास आ न सका

जहाँ में आम ग़म-ए-रोज़गार था 'नय्यर'
मगर वो इश्क़ के मारों के पास आ न सका