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मैं ही बोलूँगा न तू बोलेगा | शाही शायरी
main hi bolunga na tu bolega

ग़ज़ल

मैं ही बोलूँगा न तू बोलेगा

राग़िब मुरादाबादी

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मैं ही बोलूँगा न तू बोलेगा
बे-गुनाहों का लहू बोलेगा

मौसम-ए-गुल में ये एजाज़-ए-जुनूँ
एक इक तार-ए-रफ़ू बोलेगा

मय-कदा भी है करामत का मक़ाम
दस्त-ए-साक़ी में सुबू बोलेगा

पास-ए-पैमान-ए-मोहब्बत है मुझे
चुप रहें दोस्त अदू बोलेगा

मैं बद-अख़लाक़ नहीं हूँ मुझ से
क्यूँ बुत-ए-अरबदा-जू बोलेगा

जुर्म-ए-हक़-गोई में सर जाने पर
मेरा इक इक बुन-ए-मू बोलेगा

हूक उठेगी मिरे दिल से 'राग़िब'
जब पपीहा लब-ए-जू बोलेगा