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मैं दूर हो के भी उस से जुदा नहीं होता | शाही शायरी
main dur ho ke bhi us se juda nahin hota

ग़ज़ल

मैं दूर हो के भी उस से जुदा नहीं होता

मोहम्मद अज़हर शम्स

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मैं दूर हो के भी उस से जुदा नहीं होता
हमारे बीच कोई फ़ासला नहीं होता

बग़ैर उस के हो एहसास-ए-ज़िंदगी का सफ़र
ये सोचता तो हूँ पर हौसला नहीं होता

वो इस तरह से मिरी ज़िंदगी का हिस्सा है
इस एक हिस का बदल दूसरा नहीं होता

किया है गर्दिश-ए-हालात ने मुझे मजबूर
वगरना ज़र्फ़ छलकता सदा नहीं होता

ये सब है सेहर उसी नर्गिसी निगाही का
मुझे था फ़ख़्र कभी कि नशा नहीं होता

न जम'अ करते जो लकड़ी सियासतों के गिरोह
धुआँ तो शहर से हरगिज़ उठा नहीं होता