मैं दूर हो के भी उस से जुदा नहीं होता
हमारे बीच कोई फ़ासला नहीं होता
बग़ैर उस के हो एहसास-ए-ज़िंदगी का सफ़र
ये सोचता तो हूँ पर हौसला नहीं होता
वो इस तरह से मिरी ज़िंदगी का हिस्सा है
इस एक हिस का बदल दूसरा नहीं होता
किया है गर्दिश-ए-हालात ने मुझे मजबूर
वगरना ज़र्फ़ छलकता सदा नहीं होता
ये सब है सेहर उसी नर्गिसी निगाही का
मुझे था फ़ख़्र कभी कि नशा नहीं होता
न जम'अ करते जो लकड़ी सियासतों के गिरोह
धुआँ तो शहर से हरगिज़ उठा नहीं होता
ग़ज़ल
मैं दूर हो के भी उस से जुदा नहीं होता
मोहम्मद अज़हर शम्स