मैं दिल में उन की याद के तूफ़ाँ को पाल कर
लाया हूँ एक मौज-ए-तग़ज़्ज़ुल निकाल कर
पैमाना-ए-तरब में कहीं बाल आ गया
मैं गरचे पी रहा था बहुत ही सँभाल कर
महफ़िल जमी हुई है तिरी राह में कोई
ऐ गर्दिश-ए-ज़माना बस इतना ख़याल कर
आज़ाद जिंस-ए-दिल को फ़क़त इक नज़र पे बेच
सौदा गिराँ नहीं न बहुत क़ील-ओ-क़ाल कर
ख़त के जवाब में न लगा इतनी देर तू
मेरा अगर नहीं है तो अपना ख़याल कर
क्यूँ मैं ने दिल दिया है किसे मैं ने दिल दिया
ऐ अक़्ल आज मुझ से न इतने सवाल कर
ऐ दिल ये राह-ए-इश्क़ है राह-ए-ख़िरद नहीं
इस पर क़दम बढ़ा तू ज़रा देख भाल कर
फिर इश्क़ बज़्म-ए-हुस्न की जानिब रवाँ है आज
दीवानगी को अक़्ल के साँचे में ढाल कर
'आज़ाद' फिर दकन का समुंदर है और तू
ले जा दिल ओ नज़र का सफ़ीना सँभाल कर
ग़ज़ल
मैं दिल में उन की याद के तूफ़ाँ को पाल कर
जगन्नाथ आज़ाद