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मैं देर से धूप में खड़ा हूँ | शाही शायरी
main der se dhup mein khaDa hun

ग़ज़ल

मैं देर से धूप में खड़ा हूँ

ख़लील-उर-रहमान आज़मी

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मैं देर से धूप में खड़ा हूँ
साया साया पुकारता हूँ

सोना हूँ कुरेद कर तो देखो
मिट्टी में दबा हुआ पड़ा हूँ

ले मुझ को सँभाल गर्दिश-ए-वक़्त
टूटा हुआ तेरा आईना हूँ

यूँ रब्त तो है नशात से भी
दर-असल मैं ग़म से आश्ना हूँ

सोहबत में गुलों की मैं भी रह कर
काँटों की ज़बाँ समझ गया हूँ

दुश्मन हो कोई कि दोस्त मेरा
हर एक के हक़ में मैं दुआ हूँ

क्यूँ आब-ए-हयात को मैं तरसूँ
मैं ज़हर-ए-हयात पी चुका हूँ

तक़दीर-ए-जुनूँ पे चुप रहा मैं
ताबीर-ए-जुनूँ पे रो रहा हूँ

हर अहद के लोग मुझ से ना-ख़ुश
हर अहद में ख़्वाब देखता हूँ