मैं बज़्म-ए-तसव्वुर में उसे लाए हुए था
जो साथ न आने की क़सम खाए हुए था
दिल जुर्म-ए-मोहब्बत से कभी रह न सका बाज़
हालाँकि बहुत बार सज़ा पाए हुए था
हम चाहते थे कोई सुने बात हमारी
ये शौक़ हमें घर से निकलवाए हुए था
होने न दिया ख़ुद पे मुसल्लत उसे मैं ने
जिस शख़्स को जी जान से अपनाए हुए था
बैठे थे 'शुऊर' आज मिरे पास वो गुम-सुम
मैं खोए हुए था न उन्हें पाए हुए था
ग़ज़ल
मैं बज़्म-ए-तसव्वुर में उसे लाए हुए था
अनवर शऊर