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मैं आशिक़ी में तब सूँ अफ़्साना हो रहा हूँ | शाही शायरी
main aashiqi mein tab sun afsana ho raha hun

ग़ज़ल

मैं आशिक़ी में तब सूँ अफ़्साना हो रहा हूँ

वली मोहम्मद वली

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मैं आशिक़ी में तब सूँ अफ़्साना हो रहा हूँ
तेरी निगह का जब सूँ दीवाना हो रहा हूँ

ऐ आश्ना करम सूँ यक बार आ दरस दे
तुझ बाज सब जहाँ सूँ बेगाना हो रहा हूँ

बाताँ लगन की मत पूछ ऐ शम-ए-बज़्म-ए-ख़ूबी
मुद्दत से तुझ झलक का परवाना हो रहा हूँ

शायद वो गंज-ए-ख़ूबी आवे किसी तरफ़ सूँ
इस वास्ते सरापा वीराना हो रहा हूँ

सौदा-ए-ज़ुल्फ़-ए-ख़ूबाँ रखता हूँ दिल में दाइम
ज़ंजीर-ए-आशिक़ी का दीवाना हो रहा हूँ

बरजा है गर सुनूँ नईं नासेह तिरी नसीहत
मैं जाम-ए-इश्क़ पी कर मस्ताना हो रहा हूँ

किस सूँ 'वली' अपस का अहवाल जा कहूँ मैं
सर-ता-क़दम मैं ग़म सूँ ग़म-ख़ाना हो रहा हूँ