EN اردو
मय-ओ-साक़ी हैं सब यकजा अहाहाहा अहाहाहा | शाही शायरी
mai-o-saqi hain sab yakja ahahaha ahahaha

ग़ज़ल

मय-ओ-साक़ी हैं सब यकजा अहाहाहा अहाहाहा

मीर मोहम्मदी बेदार

;

मय-ओ-साक़ी हैं सब यकजा अहाहाहा अहाहाहा
अजब आलम है मस्ती का अहाहाहा अहाहाहा

बहार आई तुड़ाने फिर लगे ज़ंजीर दीवाने
हुआ शोर-ए-जुनूँ बरपा अहाहाहा अहाहाहा

जिन आँखों ने न देखा था कभी यक अश्क का क़तरा
चले हैं उस से अब दरिया अहाहाहा अहाहाहा

मिरे घर इस हवा में साक़ी-ओ-मुत्रिब अगर होते
तो कैसे मय-कशी करता अहाहाहा अहाहाहा

किया 'बेदार' से आशिक़ को तू ने क़त्ल ऐ ज़ालिम
कोई करता है काम ऐसा अहाहाहा अहाहाहा