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महरम-ए-दिल हुआ वो सहरा वा | शाही शायरी
mahram-e-dil hua wo sahra wa

ग़ज़ल

महरम-ए-दिल हुआ वो सहरा वा

सिराज औरंगाबादी

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महरम-ए-दिल हुआ वो सहरा वा
कर कि मालूम वाली-ओ-रुस्वा

सोच कर आह-ए-दर्द कूँ आराम
दिल हमारा हुआ दरस का गदा

मेहर कर मेहर मोम-दिल हो कर
कर अता दिल का मुद्दआ' सारा

दर्द का घर हुआ हमारा दिल
हार गुल का हुआ गुल-ए-सौदा

दिल कहा ला-इलाहा इल-लल्लाह
विर्द-ए-इस्म-ए-रसूल कर के सदा