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मचा हुआ है ख़ुदाओं की अन-कही का शोर | शाही शायरी
macha hua hai KHudaon ki an-kahi ka shor

ग़ज़ल

मचा हुआ है ख़ुदाओं की अन-कही का शोर

नीलोफ़र अफ़ज़ल

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मचा हुआ है ख़ुदाओं की अन-कही का शोर
मगर वो गूँज कि खा जाएगी सभी का शोर

तमाम रात महकता था उस की टेबल पर
गुलाब-ए-ताज़ा की ख़ुश्बू में फ़रवरी का शोर

शजर की ताब-ए-समाअ'त पे दाद बनती है
ये सुनता आया है सदियों से आदमी का शोर

ऐ ना-ख़ुदाओ समुंदर को मत सुना देना
हमारी नाव में अस्बाब की कमी का शोर

बड़े सलीक़े से आ कर क़ज़ा ने चाट लिया
ज़मीं के सहन में बरपा था ज़िंदगी का शोर

बस एक बार ज़माने के दर पे दस्तक दी
अब ऐसे कौन मचाए घड़ी घड़ी का शोर