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मार डाला मुस्कुरा कर नाज़ से | शाही शायरी
mar Dala muskura kar naz se

ग़ज़ल

मार डाला मुस्कुरा कर नाज़ से

जलील मानिकपूरी

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मार डाला मुस्कुरा कर नाज़ से
हाँ मिरी जाँ फिर इसी अंदाज़ से

किस ने कह दी उन से मेरी दास्ताँ
चौंक चौंक उठते हैं ख़्वाब-ए-नाज़ से

फिर वही वो थे वहाँ कुछ भी न था
जिस तरफ़ देखा निगाह-ए-नाज़ से

दर्द-ए-दिल पहले तो वो सुनते न थे
अब ये कहते हैं ज़रा आवाज़ से

मिट गए शिकवे जब उस ने ऐ 'जलील'
डाल दें बाँहें गले में नाज़ से