मार डाला मुस्कुरा कर नाज़ से
हाँ मिरी जाँ फिर इसी अंदाज़ से
किस ने कह दी उन से मेरी दास्ताँ
चौंक चौंक उठते हैं ख़्वाब-ए-नाज़ से
फिर वही वो थे वहाँ कुछ भी न था
जिस तरफ़ देखा निगाह-ए-नाज़ से
दर्द-ए-दिल पहले तो वो सुनते न थे
अब ये कहते हैं ज़रा आवाज़ से
मिट गए शिकवे जब उस ने ऐ 'जलील'
डाल दें बाँहें गले में नाज़ से

ग़ज़ल
मार डाला मुस्कुरा कर नाज़ से
जलील मानिकपूरी