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माना कि तिरी बज़्म में चाँद आए हुए हैं | शाही शायरी
mana ki teri bazm mein chand aae hue hain

ग़ज़ल

माना कि तिरी बज़्म में चाँद आए हुए हैं

राज़ लाइलपूरी

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माना कि तिरी बज़्म में चाँद आए हुए हैं
लेकिन वो तिरे सामने गहनाए हुए हैं

जो हम से न मिलने की क़सम खाए हुए हैं
शायद वही अग़्यार के बहकाये हुए हैं

महताब के हालात भी देखें तो कभी वो
इस हुस्न-ए-दो-रोज़ा पे जो इतराए हुए हैं

कह दो उन्हें आ कर मिरी जन्नत में वो बस जाएँ
जन्नत से निकाले हुए जो आए हुए हैं

आएगी नज़र 'राज़' कोई कल भी न सीधी
सर-ता-ब-क़दम आज वो बल खाए हुए हैं