मान मत कर आशिक़-ए-बे-ताब का अरमान मान
जान कर अंजान मत हो मुज कूँ तू बे-जान जान
फ़िक्र अपनी नहीं मुझे है उस की बद-नामी का ख़ौफ़
मुझ कूँ नाम-ओ-नंग की है हर घड़ी हर आन आन
तीर ओ ख़ंजर में नहीं है आब-दारी इस क़दर
तुझ निगह की देख कर जल्दी हुआ क़ुर्बान बान
दश्त-ए-वहशत में निपट बे-कस हूँ ऐ आहू-निगाह
हूँ भिकारी वस्ल का दे मुज कूँ इस मैदान दान
क़त्ल करने पर तिरे है तेग़-बर-कफ़ वो सनम
सर-कशी मत कर 'सिराज' अब जान का फ़रमान मान
ग़ज़ल
मान मत कर आशिक़-ए-बे-ताब का अरमान मान
सिराज औरंगाबादी