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मान मत कर आशिक़-ए-बे-ताब का अरमान मान | शाही शायरी
man mat kar aashiq-e-be-tab ka arman man

ग़ज़ल

मान मत कर आशिक़-ए-बे-ताब का अरमान मान

सिराज औरंगाबादी

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मान मत कर आशिक़-ए-बे-ताब का अरमान मान
जान कर अंजान मत हो मुज कूँ तू बे-जान जान

फ़िक्र अपनी नहीं मुझे है उस की बद-नामी का ख़ौफ़
मुझ कूँ नाम-ओ-नंग की है हर घड़ी हर आन आन

तीर ओ ख़ंजर में नहीं है आब-दारी इस क़दर
तुझ निगह की देख कर जल्दी हुआ क़ुर्बान बान

दश्त-ए-वहशत में निपट बे-कस हूँ ऐ आहू-निगाह
हूँ भिकारी वस्ल का दे मुज कूँ इस मैदान दान

क़त्ल करने पर तिरे है तेग़-बर-कफ़ वो सनम
सर-कशी मत कर 'सिराज' अब जान का फ़रमान मान