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माल-ओ-मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार बिक गए | शाही शायरी
mal-o-mata-e-kucha-o-bazar bik gae

ग़ज़ल

माल-ओ-मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार बिक गए

सरफ़राज़ सय्यद

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माल-ओ-मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार बिक गए
अहद-ए-हवस में सब दर-ओ-दीवार बिक गए

क़स्र-ए-शही में जुब्बा-ओ-दस्तार बिक गए
नीलाम घर में क़ाफ़िला-सालार बिक गए

जिंस-ए-वफ़ा के चाव में आए थे सुब्ह-दम
बोली लगी तो ख़ुद भी ख़रीदार बिक गए

शब भर रही फ़ज़ा में वफ़ा-दारियों की गूँज
सूरज चढ़ा तो सारे वफ़ादार बिक गए

वो ज़ोर था गिरानी-ए-जिंस-ए-हुनर का आज
मैं ख़ुद भी बिक गया मिरे अफ़्कार बिक गए

होश-ओ-हवास क़ल्ब-ओ-नज़र सज्दा-ओ-क़याम
ऐ इश्क़ तेरे सारे ही ग़म-ख़्वार बिक गए