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माइल हूँ गुल-बदन का मुझे गुल सीं क्या ग़रज़ | शाही शायरी
mail hun gul-badan ka mujhe gul sin kya gharaz

ग़ज़ल

माइल हूँ गुल-बदन का मुझे गुल सीं क्या ग़रज़

सिराज औरंगाबादी

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माइल हूँ गुल-बदन का मुझे गुल सीं क्या ग़रज़
काकुल में उस के बंद हूँ सुम्बुल सीं क्या ग़रज़

ख़ूनीं दिलों के क़त्ल कूँ सीधी निगाह बस
इस तेग़ कूँ फ़सान-ए-तग़ाफ़ुल सीं क्या ग़रज़

रुस्वाई-ए-जहाँ सीं मुझे फ़िक्र कुछ नहीं
दीवाना-ए-जुनूँ कूँ तअम्मुल सीं क्या ग़रज़

बस है ग़ुबार-ए-राह-ए-लिबास-ए-शहनशही
सुलतान-ए-बे-खु़दी कूँ तजम्मुल सीं क्या ग़रज़

जाम मय-ए-अलस्त सीं बे-ख़ुद हूँ ऐ 'सिराज'
दौर-ए-शराब-ओ-शीशा-ए-पुर-मुल सीं क्या ग़रज़