माह-ए-मन शम्अ तुमन दिल के शबिस्तान में आ
नूर-ए-दीदा हो मेरी चश्म के ऐवान में आ
बे-नियाज़ी सूँ तेरी जाँ-ब-लब आया है मुझे
छोड़ कर तौर-ए-जफ़ा कुछ रह-ए-एहसान में आ
दिल तो बेहाल हुआ गोई नमन सरगर्दां
ज़ुल्फ़-ए-पुर-पेच के चौगान ले मैदान में आ
सर्व-ओ-शमशाद-ओ-गुल-ओ-लाला उसी का है ज़ुहूर
देखने उस के ज़ुहूरात कूँ बुस्तान में आ
सूरत-ए-लफ़्ज़-ओ-इबारात-ओ-मआ'नी अंदर
जल्वा-गर तूँ चे हुआ है मेरे दीवान में आ
सख़्त पर्दा है गुमाँ दीदा-ए-दिल पर 'क़ुर्बी'
देक मुख यार का हर जा रह-ए-ईक़ान में आ
ग़ज़ल
माह-ए-मन शम्अ तुमन दिल के शबिस्तान में आ
क़ुर्बी वेलोरी