मा'बद-ए-ज़ीस्त में बुत की मिसाल जड़े होंगे
ये नन्हे बच्चे जिस रोज़ बड़े होंगे
इतने दुखी इस दर्जा उदास जो साए हैं
रात के दश्त में तेज़ हवा से लड़े होंगे
धूप के क़हर की लज़्ज़त के शैदाई हैं
ये अश्जार भी ख़्वाब से चौंक पड़े होंगे
हम को ख़ला की वुसअ'त से फ़ुर्सत न मिली
लाख ख़ज़ाने इस धरती में गड़े होंगे
वो दिन होगा आख़िरी दिन हम सब के लिए
आईना देखने जब हम लोग खड़े होंगे
ग़ज़ल
मा'बद-ए-ज़ीस्त में बुत की मिसाल जड़े होंगे
शहरयार