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लुत्फ़ ओ करम के पुतले हो अब क़हर ओ सितम का नाम नहीं | शाही शायरी
lutf o karam ke putle ho ab qahr o sitam ka nam nahin

ग़ज़ल

लुत्फ़ ओ करम के पुतले हो अब क़हर ओ सितम का नाम नहीं

फ़ानी बदायुनी

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लुत्फ़ ओ करम के पुतले हो अब क़हर ओ सितम का नाम नहीं
दिल पे ख़ुदा की मार कि फिर भी चैन नहीं आराम नहीं

जितने मुँह हैं उतनी बातें दिल का पता क्या ख़ाक चले
जिस ने दिल की चोरी की है एक उसी का नाम नहीं

जल्वा ओ दिल में फ़र्क़ नहीं जल्वे को ही अब दिल कहते हैं
यानी इश्क़ की हस्ती का आग़ाज़ तो है अंजाम नहीं

रुक के जो साँसें आईं गईं माना कि वो आहें थीं लेकिन
आप ने तेवर क्यूँ बदले आहों में किसी का नाम नहीं

इश्क़ के आज़ारी भी कहीं मर जाने से जी जाते हैं
ले ये तसल्ली रहने दे ऐ मौत ये तेरा काम नहीं

कब से पड़ी हैं दिल में तेरे ज़िक्र की सारी राहें बंद
बरसों गुज़रे इस बस्ती में रस्म-ए-सलाम-ओ-पयाम नहीं

हद थी ये बेताबी-ए-दिल की जानिए अब क्या होना है
सब्र की हद भी होने आई सुब्ह नहीं या शाम नहीं

दिल पे अपना बस नहीं चलता उन की शिकायत क्या कीजे
आप हम अपने दुश्मन ठहरे दोस्त पे कुछ इल्ज़ाम नहीं

दिल से किसी की आँखों तक कुछ राज़ की बातें पहुँची हैं
आँख से दिल तक आया हो ऐसा तो कोई पैग़ाम नहीं

नज़अ में 'फ़ानी' तू ने ये किस का चुपके चुपके नाम लिया
क्यूँ ओ काफ़िर तेरी ज़बाँ पर अब भी ख़ुदा का नाम नहीं