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लोगों के दर्द अपनी पशेमानियाँ मिलीं | शाही शायरी
logon ke dard apni pashemaniyan milin

ग़ज़ल

लोगों के दर्द अपनी पशेमानियाँ मिलीं

अदीम हाशमी

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लोगों के दर्द अपनी पशेमानियाँ मिलीं
हम शाह-ए-ग़म थे हम को यही रानियाँ मिलीं

सहराओं में भी जा के नज़र आए सैल-ए-आब
दरिया से दूर भी हमें तुग़्यानियाँ मिलीं

आया न फिर वो दौर कि जी भर के खेलिए
बचपन के बा'द फिर न वो नादानियाँ मिलीं

रह कर अलग भी साथ रहा है कोई ख़याल
तन्हाई में भी ख़ुद पे निगहबानियाँ मिलीं

पानी के साथ अक्स भी बह कर चले गए
सूखी नदी तो फिर वही वीरानियाँ मिलीं

अपनी ही आँख पर गए लम्हों का बोझ था
इस की नज़र में तो वही जौलानियाँ मिलीं

बैठा रहा हुमा-ए-सितम सर पे ही 'अदीम'
हर दश्त-ए-कर्ब की हमें सुल्तानियाँ मिलीं