लोग कहते हैं कि इस खेल में सर जाते हैं
इश्क़ में इतना ख़सारा है तो घर जाते हैं
मौत को हम ने कभी कुछ नहीं समझा मगर आज
अपने बच्चों की तरफ़ देख के डर जाते हैं
ज़िंदगी ऐसे भी हालात बना देती है
लोग साँसों का कफ़न ओढ़ के मर जाते हैं
पाँव में अब कोई ज़ंजीर नहीं डालते हम
दिल जिधर ठीक समझता है उधर जाते हैं
क्या जुनूँ-ख़ेज़ मसाफ़त थी तिरे कूचे की
और अब यूँ है कि ख़ामोश गुज़र जाते हैं
ये मोहब्बत की अलामत तो नहीं है कोई
तेरा चेहरा नज़र आता है जिधर जाते हैं
ग़ज़ल
लोग कहते हैं कि इस खेल में सर जाते हैं
शकील जमाली