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लोग जब जश्न बहारों का मनाने निकले | शाही शायरी
log jab jashn bahaaron ka manane nikle

ग़ज़ल

लोग जब जश्न बहारों का मनाने निकले

कुमार पाशी

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लोग जब जश्न बहारों का मनाने निकले
हम बयाबानों में तब ख़ाक उड़ाने निकले

खुल गया दफ़्तर-ए-सद-रंग मुलाक़ातों का
हुस्न के ज़िक्र पे क्या क्या न फ़साने निकले

इश्क़ का रोग कि दोनों से छुपाया न गया
हम थे सौदाई तो कुछ वो भी दिवाने निकले

जब खिले फूल चमन में तो तिरी याद आई
चंद आँसू भी मसर्रत के बहाने निकले

शहर वाले सभी बे-चेहरा हुए हैं 'पाशी'
हम ये किन लोगों को आईना दिखाने निकले