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लो ज़ोफ़ से अब ये हाल-ए-तन है | शाही शायरी
lo zoaf se ab ye haal-e-tan hai

ग़ज़ल

लो ज़ोफ़ से अब ये हाल-ए-तन है

नसीम देहलवी

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लो ज़ोफ़ से अब ये हाल-ए-तन है
साया मुतजस्सिस-ए-बदन है

यहाँ तन ही नहीं है लाग़री से
हम को क्या हाजत-ए-कफ़न है

मिस्ल-ए-निकहत हैं जामा कैसा
अपना तो बदन ही पैरहन है

हूँ बुलबुल-ए-बोस्तान-ए-तस्वीर
बे-ख़ौफ़-ए-ख़िज़ाँ मिरा चमन है

हूँ कुश्ता-ए-तेग़-ए-शर्म-ए-जानाँ
हर ज़ख़्म का बे-ज़बाँ धन है

ला-रैब 'नसीम'-देहलवी तो
उस्ताद-ए-नज़ाकत-ए-सुख़न है