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लिए आदम ने अपने बेटे पाँच | शाही शायरी
liye aadam ne apne beTe panch

ग़ज़ल

लिए आदम ने अपने बेटे पाँच

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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लिए आदम ने अपने बेटे पाँच
जुदी होती है हौले हौले आँच

क़ैद-ए-मज़हब से मुझ को क्या मतलब
मैं नहीं जानता हूँ तीन और पाँच

किस दहन ने ये उस को तंग किया
तिफ़्ल-ए-ग़ुंचा की जो निकल गई काँच

आदमी है वही जो दुनिया में
झूट को झूट जाने साँच को साँच

उस्तुख़ाँ-बंदी-ए-तन-ए-मजनूँ
अपनी नज़रों में है पतंग का ढाँच

राम-ए-मजनूँ नहीं हुई लैला
मिस्ल-ए-आहू बिरह भरे है कलाँच

गो पढ़ीं तू ने सौ किताब तो क्या
'मुसहफ़ी' इक ख़त-ए-जबीं को तू बाँच