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लिख दे आमिल कोई ऐसा ता'वीज़ | शाही शायरी
likh de aamil koi aisa tawiz

ग़ज़ल

लिख दे आमिल कोई ऐसा ता'वीज़

हफ़ीज़ जौनपुरी

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लिख दे आमिल कोई ऐसा ता'वीज़
यार हो जाए गले का ता'वीज़

कब मुसख़्ख़र ये हसीं होते हैं
सब ये बे-कार है गंडा-ता'वीज़

न हुआ यार का ग़ुस्सा ठंडा
बार-हा धो के पिलाया ता'वीज़

सर से गेसू की बला जाती है
लाए तो रद्द-ए-बला का ता'वीज़

मर के भी दिल की तड़प इतनी है
शक़ हुआ मेरी लहद का ता'वीज़

हर तरह होती है मायूसी जब
लोग करते हैं दुआ या ता'वीज़

आरज़ू ख़ाक में दुश्मन की मिले
इस लिए दफ़्न किया था ता'वीज़

हाथ से अपने जो लिक्खा उस ने
हम ने उस ख़त को बनाया ता'वीज़

जिस से आया हुआ दिल रुक जाए
कोई ऐसा भी है लटका ता'वीज़

दिल पसीजा न किसी दिन उन का
रोज़ लिख लिख के जलाया ता'वीज़

काम लो जज़्ब-ए-मोहब्बत से 'हफ़ीज़'
नक़्श क्या चीज़ है कैसा ता'वीज़