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ले के हाथों में मोहब्बत के गुहर आए हैं | शाही शायरी
le ke hathon mein mohabbat ke guhar aae hain

ग़ज़ल

ले के हाथों में मोहब्बत के गुहर आए हैं

नबील अहमद नबील

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ले के हाथों में मोहब्बत के गुहर आए हैं
इक नज़र देख तिरे ख़ाक-बसर आए हैं

इक अजब धड़का दिल-ओ-जाँ को लगा रहता है
जब भी परदेस से हम लौट के घर आए हैं

जिस तरफ़ भी मैं गया मैं ने जिधर भी देखा
ज़ख़्म की तरह मुझे लोग नज़र आए हैं

नोक-ए-नेज़ा की तरफ़ एक नज़र देख ज़रा
किस बुलंदी पे वो उश्शाक़ के सर आए हैं

मोम हो जाए वो पत्थर की तरह सख़्त बदन
अपने नालों में कहाँ इतने असर आए हैं

सर-फिरी आँधी गिराने उसे आ पहुँची है
आस के पेड़ पे जिस दम से समर आए हैं

जब से उतरा है सफ़ीना मिरा साहिल पे 'नबील'
मौज-दर-मौज किनारे पे भँवर आए हैं