EN اردو
ले गया घर से उन्हें ग़ैर के घर का ता'वीज़ | शाही शायरी
le gaya ghar se unhen ghair ke ghar ka tawiz

ग़ज़ल

ले गया घर से उन्हें ग़ैर के घर का ता'वीज़

रियाज़ ख़ैराबादी

;

ले गया घर से उन्हें ग़ैर के घर का ता'वीज़
हम ने देखा न सुना ऐसे असर का ता'वीज़

दे के बू ज़ुल्फ़ की रख लो तह-महरम दिल को
ख़्वाब में फिर न डरोगे ये है डर का ता'वीज़

सदक़े तेरे मुझे तस्कीन से तस्कीन हुई
ख़त तिरा था कि मिरे दर्द-ए-जिगर का ता'वीज़

हो मुबारक तुझे आँखों में समाना दिन-रात
जे़ब-ए-बाज़ू रहे हर-वक़्त नज़र का ता'वीज़

रह गया ग़ैर के घर जाइए भी लाइए भी
आप के सर की क़सम आप के सर का ता'वीज़

बाँध ले बहर-ए-ख़ुदा अपने भरे बाज़ू पर
नज़र-ए-बद से बचाएगा नज़र का ता'वीज़

घर गए अपने बता कर वो हमें राह-ए-अदम
वस्ल की शब की निशानी है कमर का ता'वीज़

हाथ भी आएँ तो है हाथ लगाना मुश्किल
सर-ए-बाज़ू है बँधा ख़ास असर का ता'वीज़

डर से उन के भरे बाज़ू कई काग़ज़ उतरे
हाथ थामा था शब-ए-वस्ल कि सरका ता'वीज़

दिल है अब माँग के आग़ोश में दिन-रात 'रियाज़'
ये तो सर चढ़ के बना यार के सर का ता'वीज़