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लज़्ज़त-ए-ख़्वाब दे गए हुस्न-ए-ख़याल दे गए | शाही शायरी
lazzat-e-KHwab de gae husn-e-KHayal de gae

ग़ज़ल

लज़्ज़त-ए-ख़्वाब दे गए हुस्न-ए-ख़याल दे गए

नज़ीर सिद्दीक़ी

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लज़्ज़त-ए-ख़्वाब दे गए हुस्न-ए-ख़याल दे गए
एक झलक में इतना कुछ अहल-ए-जमाल दे गए

आए तो दिल था बाग़ बाग़ और गए तो दाग़ दाग़
कितनी ख़ुशी वो लाए थे कितना मलाल दे गए

दीदा-वरों की राह पर कौन हुआ है गामज़न
वो मगर अपनी ज़ात से एक मिसाल दे गए

इस से ज़ियादा राहज़न करते भी मुझ पे क्या सितम
माल-ओ-मनाल ले गए फ़िक्र-ए-मआल दे गए

अहल-ए-कमाल को 'नज़ीर' अहल-ए-जहाँ ने क्या दिया
अहल-ए-जहाँ को क्या नहीं अहल-ए-कमाल दे गए