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लग़्ज़िश-ए-साक़ी-ए-मय-ख़ाना ख़ुदा ख़ैर करे | शाही शायरी
laghzish-e-saqi-e-mai-KHana KHuda KHair kare

ग़ज़ल

लग़्ज़िश-ए-साक़ी-ए-मय-ख़ाना ख़ुदा ख़ैर करे

अब्दुल्लतीफ़ शौक़

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लग़्ज़िश-ए-साक़ी-ए-मय-ख़ाना ख़ुदा ख़ैर करे
फिर न टूटे कोई पैमाना ख़ुदा ख़ैर करे

हर घड़ी जल्वा-ए-जानाना ख़ुदा ख़ैर करे
तेरा दिल है कि सनम-ख़ाना ख़ुदा ख़ैर करे

लोग कर डालें न ख़ुद अपने जिगर के टुकड़े
बे-नक़ाब उन का चले आना ख़ुदा ख़ैर करे

दिल की बात उन से अभी कह तो गए हो लेकिन
कोई बन जाए न अफ़्साना ख़ुदा ख़ैर करे

शम्अ' बेचैन है बदनाम न हो जाऊँ कहीं
पर जला बैठा है परवाना ख़ुदा ख़ैर करे

कौन गुज़रेगा तिरे दार-ओ-रसन से हंस कर
ग़म है जाने कहाँ दीवाना ख़ुदा ख़ैर करे

पाँव उठते ही नहीं 'शौक़' जबीं है बेताब
सामने है दर-ए-जानाना ख़ुदा ख़ैर करे