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लगा के ग़ोता समुंदर में तुम गुहर ढूँडो | शाही शायरी
laga ke ghota samundar mein tum guhar DhunDo

ग़ज़ल

लगा के ग़ोता समुंदर में तुम गुहर ढूँडो

तासीर सिद्दीक़ी

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लगा के ग़ोता समुंदर में तुम गुहर ढूँडो
कमाल जीने में है जीने के हुनर ढूँडो

मुक़द्दरों से ही सब कुछ तो मिल नहीं सकता
शजर लगाओ तो मेहनत के फिर समर ढूँडो

उड़ान भरने के है वास्ते फ़लक सारा
हैं बाज़ुओं में जो पिन्हाँ वो बाल-ओ-पर ढूँडो

हर एक रात में तो चाँदनी नहीं खिलती
दहक रहा है कहीं तुम में ही क़मर ढूँडो

गुज़र के आग से ढलता है सोना ज़ेवर में
अगर सँवरना है 'तासीर' शोला-गर ढूँडो