लगा के ग़ोता समुंदर में तुम गुहर ढूँडो
कमाल जीने में है जीने के हुनर ढूँडो
मुक़द्दरों से ही सब कुछ तो मिल नहीं सकता
शजर लगाओ तो मेहनत के फिर समर ढूँडो
उड़ान भरने के है वास्ते फ़लक सारा
हैं बाज़ुओं में जो पिन्हाँ वो बाल-ओ-पर ढूँडो
हर एक रात में तो चाँदनी नहीं खिलती
दहक रहा है कहीं तुम में ही क़मर ढूँडो
गुज़र के आग से ढलता है सोना ज़ेवर में
अगर सँवरना है 'तासीर' शोला-गर ढूँडो

ग़ज़ल
लगा के ग़ोता समुंदर में तुम गुहर ढूँडो
तासीर सिद्दीक़ी