लब-ब-लब बिंत-उल-अनब हर-दम रहे
दौर-दौर-ए-जाम-ए-मय जम जम रहे
ज़िक्र-ए-क़ुमरी भी जो करते हम रहे
उस सही क़ामत का भरते दम रहे
दूद-ए-ख़त हो या दुख़ान-ए-ज़ुल्फ़ हो
जिस जगह धूनी रमाई रम रहे
शोख़ कैसा है अक़ीक़-ए-सुर्ख़ हो
ला'ल-ए-लब से रंग में मद्धम रहे
ना-तवानी ने बिठाया जिस जगह
फिर न उठ्ठे लैस हो कर जम रहे
जब मैं रोया बारिश-ए-बाराँ हुई
खुल गया मुँह अश्क जिस दम थम रहे
'शाद' पीछा कर के ग़ौल-ए-नफ़्स का
राह-ए-हक़ भूले-भटकते हम रहे
ग़ज़ल
लब-ब-लब बिंत-उल-अनब हर-दम रहे
शाद लखनवी