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लब-ब-लब बिंत-उल-अनब हर-दम रहे | शाही शायरी
lab-ba-lab bint-ul-anab har-dam rahe

ग़ज़ल

लब-ब-लब बिंत-उल-अनब हर-दम रहे

शाद लखनवी

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लब-ब-लब बिंत-उल-अनब हर-दम रहे
दौर-दौर-ए-जाम-ए-मय जम जम रहे

ज़िक्र-ए-क़ुमरी भी जो करते हम रहे
उस सही क़ामत का भरते दम रहे

दूद-ए-ख़त हो या दुख़ान-ए-ज़ुल्फ़ हो
जिस जगह धूनी रमाई रम रहे

शोख़ कैसा है अक़ीक़-ए-सुर्ख़ हो
ला'ल-ए-लब से रंग में मद्धम रहे

ना-तवानी ने बिठाया जिस जगह
फिर न उठ्ठे लैस हो कर जम रहे

जब मैं रोया बारिश-ए-बाराँ हुई
खुल गया मुँह अश्क जिस दम थम रहे

'शाद' पीछा कर के ग़ौल-ए-नफ़्स का
राह-ए-हक़ भूले-भटकते हम रहे