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लाज़िम कहाँ कि सारा जहाँ ख़ुश-लिबास हो | शाही शायरी
lazim kahan ki sara jahan KHush-libas ho

ग़ज़ल

लाज़िम कहाँ कि सारा जहाँ ख़ुश-लिबास हो

वज़ीर आग़ा

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लाज़िम कहाँ कि सारा जहाँ ख़ुश-लिबास हो
मैला बदन पहन के न इतना उदास हो

इतना न पास आ कि तुझे ढूँडते फिरें
इतना न दूर जा के हमा-वक़्त पास हो

इक जू-ए-बे-क़रार हो क्यूँ दिल-कशी तिरी
क्यूँ इतनी तिश्ना-लब मिरी आँखों की प्यास हो

पहना दे चाँदनी को क़बा अपने जिस्म की
उस का बदन भी तेरी तरह बे-लिबास हो

आए वो दिन कि किश्त-ए-फ़लक हो हरी-भरी
बंजर ज़मीं पे मीलों तलक सब्ज़ घास हो