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लाई बहार शौक़ के सामाँ नए नए | शाही शायरी
lai bahaar shauq ke saman nae nae

ग़ज़ल

लाई बहार शौक़ के सामाँ नए नए

मुमताज़ मीरज़ा

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लाई बहार शौक़ के सामाँ नए नए
दुनिया नई नई सी दिल ओ जाँ नए नए

साक़ी की इक निगाह ने बख़्शी हयात-ए-नौ
दिल में मचल गए मिरे अरमाँ नए नए

हर आन तर्ज़-ए-नौ से सताए है आसमाँ
मेरे लिए सितम के हैं उनवाँ नए नए

बर्बादियों का अपने नशेमन की ग़म नहीं
तामीर हो रहे हैं गुलिस्ताँ नए नए

फ़स्ल-ए-बहार आई मुबारक हो ऐ जुनूँ
दामन नए नए हैं गरेबाँ नए नए

उस चश्म-ए-नीम-बाज़ की वो कम-निगाहियाँ
दिल में उतर गए मिरे पैकाँ नए नए

मस्जिद में भी फ़साना बुतों का जनाब-ए-शैख़
शायद हुए हैं आप मुसलमाँ नए नए

'मुमताज़' इक चराग़-ए-सर-ए-रहगुज़र सही
होंगे चराग़ उस से फ़रोज़ाँ नए नए