क्यूँ देखते ही नक़्श-ब-दीवार बन गए
तुम आइने में किस के ख़रीदार बन गए
बिजली छलावा फ़ित्ना क़यामत ग़ज़ब बला
मैं क्या कहूँ वो क्या दम-ए-रफ़्तार बन गए
बाज़ार-ए-दहर का तो यही कारोबार है
दो-चार अगर बिगड़ गए दो-चार बन गए
इक सैर थी मज़े की ये आराइशों के वक़्त
सौ बार वो बिगड़ गए सौ बार बन गए
हाँ हाँ उन्हीं के पीछे तो दी है 'शरफ़' ने जान
आ कर हँसी-ख़ुशी जो अज़ा-दार बन गए

ग़ज़ल
क्यूँ देखते ही नक़्श-ब-दीवार बन गए
शरफ़ मुजद्दिदी