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क्यूँ डराते हो मुझे मौत का साया बन कर | शाही शायरी
kyun Daraate ho mujhe maut ka saya ban kar

ग़ज़ल

क्यूँ डराते हो मुझे मौत का साया बन कर

कुमार पाशी

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क्यूँ डराते हो मुझे मौत का साया बन कर
मेरे सीने में उतर जाओ उजाला बन कर

क्यूँ नहीं चलते कि जाना है बहुत दूर अभी
क्यूँ यहाँ रुक गए बेकार तमाशा बन कर

टूट कर बुझ गए आकाश के सारे सूरज
और मैं रह गया इस दहर में अंधा बन कर

मैं ही इक ज़हर लगा अपनों को बेगानों को
मैं ही इक क़त्ल हुआ शहर में सच्चा बन कर

क्यूँ भला छोड़ नहीं देता वो तन्हा मुझ को
क्यूँ मिरे साथ लगा रहता है साया बन कर