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क्या से क्या हो गई इस दौर में हालत घर की | शाही शायरी
kya se kya ho gai is daur mein haalat ghar ki

ग़ज़ल

क्या से क्या हो गई इस दौर में हालत घर की

रहबर जौनपूरी

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क्या से क्या हो गई इस दौर में हालत घर की
दश्त पुर-नूर हुए बढ़ गई ज़ुल्मत घर की

सब की दहलीज़ों पे जलते हैं तअ'स्सुब के चराग़
क्या करेगा कोई ऐसे में हिफ़ाज़त घर की

ख़ामुशी फ़र्ज़-ए-रिवायात इनायत ईसार
इन्हें बुनियादों पे मौक़ूफ़ है अज़्मत घर की

जिन के हिस्से में कोई साया-ए-दीवार नहीं
वो भी इंसाँ हैं उन्हें भी है ज़रूरत घर की

लाख क़िस्मत में ग़रीब-उल-वतनी हो 'रहबर'
खींच लाती है मगर फिर भी मोहब्बत घर की