क्या मिले आप की महफ़िल में भला एक से एक
रश्क ऐसा है कि बैठा है जुदा एक से एक
दिल मिले हाथ मिले उठ के निगाहें भी मिलीं
वस्ल भी ईद है मिलने को बढ़ा एक से एक
ऐसे-वैसों को तो मुँह भी न लगाया हम ने
माह-रू हम को तो अच्छा ही मिला एक से एक
कान से दिल ने लिया दिल से रगों ने छीना
ले रहा है तिरी बातों का मज़ा एक से एक
ज़र्फ़ देखा ये मय-ए-इश्क़ के सरशारों का
बे-ख़ुदी में भी तो 'बेख़ुद' न खुला एक से एक
ग़ज़ल
क्या मिले आप की महफ़िल में भला एक से एक
बेख़ुद देहलवी