क्या कीजिए रक़म सनद-ए-एहतिशाम-ए-ज़ुल्फ़
है दफ़्तर-ए-जमाल पे तुग़रा-ए-लाम-ए-ज़ुल्फ़
ख़िदमत हो ग़ाज़ा-ए-गुल-ए-रुख़ की नसीम को
मौज-ए-हवा चमन में करे इंतिज़ाम-ए-ज़ुल्फ़
फ़स्ल-ए-बहार आई जुनूँ-ख़ेज़ देखिए
सौदाइयों को आने लगे फिर पयाम-ए-ज़ुल्फ़
मूज़ी जो सर चढ़ा तो बना मार-ए-आस्तीं
सर पे न चाहिए था बुतों के मक़ाम-ए-ज़ुल्फ़
सौदा-ए-ज़ुल्फ़ चीन-ए-जबीं ने मिटा दिया
ताराज चीनियों ने किया आ के शाम-ए-ज़ुल्फ़
कब हुस्न-ए-आरिज़ी पे लटकती है सुब्ह-ओ-शाम
इस्लाम पर है ता'न से हर-दम सलाम-ए-ज़ुल्फ़
छुट के उठा रहे हैं असीरान-ए-दाम-ए-ज़ुल्फ़
आराम अब कहाँ दिल-ए-वहशी है राम-ए-ज़ुल्फ़
बालों को अपने तुम रुख़-ए-रौशन पे छोड़ दो
फेंको मियान-ए-चश्मा-ए-ख़ुर्शीद दाम-ए-ज़ुल्फ़
तक़रीर क्यूँ न उलझी हुई बर ज़बाँ रहे
है दर्स में रिसाला-ए-इल्म-ए-कलाम-ए-ज़ुल्फ़
दीवाने हम हैं गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार के
है सुब्ह सुब्ह रू-ए-परी-शाम शाम-ए-ज़ुल्फ़
पाया सियाह-बख़्ती-ए-उश्शाक़ ने भी औज
फ़ीरोज़ा-ए-फ़लक पे किया कुंदा नाम-ए-ज़ुल्फ़
ज़ुल्फ़ें हवा से कब रुख़-ए-आरिज़ पे आ गईं
है सब्ज़ा-ए-बहार के मुँह में लगाम-ए-ज़ुल्फ़
आए सियाह-दिल हैं रक़ीबों के उस पे 'मेहर'
पोशिश में है अबस हरम-ए-एहतिराम-ए-ज़ुल्फ़
ग़ज़ल
क्या कीजिए रक़म सनद-ए-एहतिशाम-ए-ज़ुल्फ़
अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी