EN اردو
क्या कहूँ क्या मिला है क्या न मिला | शाही शायरी
kya kahun kya mila hai kya na mila

ग़ज़ल

क्या कहूँ क्या मिला है क्या न मिला

रविश सिद्दीक़ी

;

क्या कहूँ क्या मिला है क्या न मिला
दिल भी शायान-ए-दिलरुबा न मिला

तल्ख़ी-ए-ज़िंदगी अरे तौबा
ज़हर में ज़हर का मज़ा न मिला

हम को अपनी ख़बर न दामन की
चश्म-ए-रहमत को इक बहाना मिला

लाख मिलने का एक मिलना है
कि हमें इज़्न-ए-इल्तिजा न मिला

फ़ित्ना-ए-रिंद-ओ-मोहतसिब तौबा
बरमला कोई पारसा न मिला

थी बड़ी भीड़ उस के कूचे में
ख़िज़्र आए थे रास्ता न मिला

किस से मिलिए 'रविश' कि दिल्ली में
सब मिले वो ख़ुद-आश्ना न मिला