EN اردو
क्या हिना ख़ूँ-रेज़ निकली हाए पिस जाने के बाद | शाही शायरी
kya hina KHun-rez nikli hae pis jaane ke baad

ग़ज़ल

क्या हिना ख़ूँ-रेज़ निकली हाए पिस जाने के बाद

जलील मानिकपूरी

;

क्या हिना ख़ूँ-रेज़ निकली हाए पिस जाने के बाद
बन गई तलवार उन के हाथ में आने के बाद

जाम-ए-जम की धूम है सारे जहाँ में साक़िया
मानता हूँ मैं भी लेकिन तेरे पैमाने के बाद

शुक्रिया वाइज़ जो मुझ को तर्क-ए-मय की दी सलाह
ग़ौर मैं इस पर करूँगा होश में आने के बाद

शम्अ माशूक़ों को सिखलाती है तर्ज़-ए-आशिक़ी
जल के परवाने से पहले बुझ के परवाने के बाद

आश्ना हो कर बुतों के हो गए हक़-आश्ना
हम ने काबे की बिना डाली है बुत-ख़ाने के बाद

मैं करूँ किस का नज़ारा देख कर तेरा जमाल
मैं सुनूँ किस का फ़साना तेरे अफ़्साने के बाद

शम-ए-महफ़िल का हुआ ये रंग उन के सामने
फूल की होती है सूरत जैसे मुरझाने के बाद

सच ये कहते हैं कि हँसने की जगह दुनिया नहीं
चश्म-ए-इबरत हैं चमन के फूल मुरझाने के बाद

फ़िक्र ओ काविश हो तो निकलें मअ'नी-ए-रंगीं 'जलील'
लाल उगलती है ज़बाँ ख़ून-ए-जिगर खाने के बाद