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क्या ग़ज़ब है कि चार आँखों में | शाही शायरी
kya ghazab hai ki chaar aankhon mein

ग़ज़ल

क्या ग़ज़ब है कि चार आँखों में

रजब अली बेग सुरूर

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क्या ग़ज़ब है कि चार आँखों में
दिल चुराता है यार आँखों में

चश्म-ए-कैफ़ी के सुर्ख़ डोरों से
छा रही है बहार आँखों में

गिर पड़ा तिफ़्ल-ए-अश्क ये मचला
मैं ने रोका हज़ार आँखों में

नहीं उठती पलक नज़ाकत से
सुर्मा होता है बार आँखों में

इतनी छानी है ख़ाक तेरे लिए
छा रहा है ग़ुबार आँखों में

जब से अपना लक़ब हुआ है 'सुरूर'
रोज़ ओ शब है ख़ुमार आँखों में