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कूचा-ए-जानाँ में जा निकले जो ग़िल्माँ भूल कर | शाही शायरी
kucha-e-jaanan mein ja nikle jo ghilman bhul kar

ग़ज़ल

कूचा-ए-जानाँ में जा निकले जो ग़िल्माँ भूल कर

फ़ानी बदायुनी

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कूचा-ए-जानाँ में जा निकले जो ग़िल्माँ भूल कर
याद हो उस को न फिर गुलज़ार-ए-रिज़वाँ भूल कर

संग-दिल बे-मेहर बे-दीं बेवफ़ा समझे न हम
कर दिए सदक़े हसीनों पर दिल ओ जाँ भूल कर

बोसा-ए-अब्रू को ले कर मुँह पे खाई हम ने तेग़
कुछ किया तुम ने न पास-ए-तेग़ उर्यां भूल कर

कर के तौबा क़ौल है अब हज़रत-ए-दिल का यही
अब कभी लेंगे न नाम-ए-इश्क़-ए-ख़ूबाँ भूल कर

ख़ूँ रुलाया उम्र भर 'शौकत' फ़िराक़-ए-यार ने
मरते मरते भी न निकला कोई अरमाँ भूल कर