कूचा-ए-जानाँ में जा निकले जो ग़िल्माँ भूल कर
याद हो उस को न फिर गुलज़ार-ए-रिज़वाँ भूल कर
संग-दिल बे-मेहर बे-दीं बेवफ़ा समझे न हम
कर दिए सदक़े हसीनों पर दिल ओ जाँ भूल कर
बोसा-ए-अब्रू को ले कर मुँह पे खाई हम ने तेग़
कुछ किया तुम ने न पास-ए-तेग़ उर्यां भूल कर
कर के तौबा क़ौल है अब हज़रत-ए-दिल का यही
अब कभी लेंगे न नाम-ए-इश्क़-ए-ख़ूबाँ भूल कर
ख़ूँ रुलाया उम्र भर 'शौकत' फ़िराक़-ए-यार ने
मरते मरते भी न निकला कोई अरमाँ भूल कर
ग़ज़ल
कूचा-ए-जानाँ में जा निकले जो ग़िल्माँ भूल कर
फ़ानी बदायुनी